किरदार आईना इन्सान का सिर्फ़ चेहरा दिखाया करता है उस अक्स में उसका किरदार तो नहीं जो किरदार में झलकता है वही ज्ञान है इल्म पैसों का मोहताज़ तो नहीं समाज की इस दौड़ ने चिड़ियों के पर काट दिए हर किरदार मिसाल हो ये ज़रूरी तो नहीं यूँ तो चाँद भी दावा करता है रौशनी का हर रात उसका किरदार किसी भी रात सूरज तो नहीं ये अच्छा है वो बुरा है उसका किरदार बतलाएगा धर्म उसके किरदार का पहचान पत्र तो नहीं समाचार भी नफ़ा नुक्सान देखकर बेचे जाते हैं आज़ाद सोच भी यहाँ आज़ाद तो नहीं कैसे यकीन करे कोई किसी अख़बार पर इनके किरदार पर ऐतबार तो नहीं पुरानी कहानी में पुराने किरदार मिलते हैं मेरा आज का किस्सा वही पुराना तो नहीं वो मेरे किरदार से मेरा व्यक्तित्व आँकते हैं मैं जो कल था आज वही तो नहीं मैं बेटा हूँ, बाप हूँ, पति हूँ, दोस्त हूँ मैं हर किरदार में एक ही शख्स तो नहीं देखा जाए तो परदे में है किरदार हर किसी का उसके लफ्ज़ उसकी हक़ीक़त तो नहीं अक्सर यहाँ ज़माने में कहानी बिकती...
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