!! मैं आज फिर सारी रात लेटा रहा बिस्तर पर बदलता रहा करवटें नींद के इंतज़ार में बेख़बर मैं वक़्त से रात से दिन से शायद रूह थी मेरी किसी सुकून के इंतज़ार में ये कैसी पहेली है ज़िन्दगी की इस घड़ी मैं आज फिर लिख रहा हूँ जाने किसके इंतज़ार में बदलता रहा करवटें नींद के इंतज़ार में जिस किताब को मैंने खोला नहीं बरसों से आज उसकी स्याही गहरा गयी किस रंग के इंतज़ार में ख़ामोश था समां सारा ख़ामोश सारी जिन्दगियां सन्नाटा चीख़ उठा अचानक किसी आवाज़ के इंतज़ार में बदलता रहा करवटें नींद के इंतज़ार में पढ़ लिया मैंने भी हवा की मायूसी को उ...
ThePenDown is an emotion which has found its thought and the thought has found words