!!
मैं आज फिर सारी रात
लेटा रहा बिस्तर पर
बदलता रहा करवटें
नींद के इंतज़ार में
बेख़बर मैं वक़्त से
रात से दिन से शायद
रूह थी मेरी किसी
सुकून के इंतज़ार में
ये कैसी पहेली है
ज़िन्दगी की इस घड़ी
मैं आज फिर लिख रहा हूँ
जाने किसके इंतज़ार में
बदलता रहा करवटें
नींद के इंतज़ार में
जिस किताब को मैंने
खोला नहीं बरसों से
आज उसकी स्याही गहरा गयी
किस रंग के इंतज़ार में
ख़ामोश था समां सारा
ख़ामोश सारी जिन्दगियां
सन्नाटा चीख़ उठा अचानक
किसी आवाज़ के इंतज़ार में
बदलता रहा करवटें
नींद के इंतज़ार में
पढ़ लिया मैंने भी
हवा की मायूसी को
उसमें भी नमी थी
किसीकी खुशबू के इंतज़ार में
फिर एहसास हुआ मुझको जब
देखा आईने में खुद को
मेरी ही आँखें नम थी
उसके इंतज़ार में
बदलता रहा करवटें
नींद के इंतज़ार में
मैं जानता हूँ उसका
हाल-ए-दिल भी ऐसा होगा
वो भी सिसकती होगी तन्हा
बीते लम्हों के इंतज़ार में
जिन्दगी थम गयी जैसे
साथ छूट गया साँसों का
अँधेरा भी खामोश है
साए के इंतज़ार में
बदलता रहा करवटें
नींद के इंतज़ार में
रूह थी मेरी किसी
सुकून के इंतज़ार में
!!
{लेख़क: SAURAV BANSAL}
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