हम मिड्ल क्लास कहलाते हैं बच्चों को सुबह स्कूल भेजकर खुद का नाश्ता भूल जाते हैं हर रोज़ सुबह दफ़्तर में हम वक़्त पर हाज़िरी लगाते हैं फिर कभी बड़े साहब को उसके साहब से दुत्कार मिले उसके अंदर के आक्रोश को भी हम चुप चाप सह जाते हैं हम मिड्ल क्लास कहलाते हैं अपनी चाहत का गला घोटकर झूठी शान दिखलाते हैं हम जो खुद नहीं कर पाए वो बच्चों से बोझ उठवाते हैं हमको कैसे जीना है ये समाज के मुर्दे बतलाते हैं खुद समाज का हिस्सा हैं पर जाने किससे घबराते हैं हम मिड्ल क्लास कहलाते हैं अपने जीने का साधन सब किश्तों पर लेकर आते हैं अपने परिवार की खातिर हम अधिकोष से क़र्ज़ उठाते हैं ये चुका नहीं पाए तो सरकार माफ़ कर...
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