!! एक शाम यूँही आसमान की छाओं में हम बैठे है कुदरत की बाहों में ये पानी का शोर जो कानों का संगीत है आज ज़िन्दगी का एक अलग ही रंग रूप है मैं मेरा मेरी मुझसे दूर अपने हर दिन की रुत से आज मौसम ये जीने का है ज़िन्दगी हर पल एक नगमा है हर रोज़ की मौत से दूर शहर की सोच से यहाँ न अपना न कोई दूसरा दुनिया-दारी से न कोई राब्ता सरसराती ठण्डी हवायें गले लगाती सूरज की बाहें चहचहाती चिड़ियों की बोली जीवन की ये रास-रंगोली हमें क्या पता हमें क्या ख़बर शहर की हवा में ज़हर घोल कर जीते है हम जैसे सब है ख़ुद को ख़ुद में लगता डर है जाने कब वो मौसम आ जाए ज़िन्दगी
ThePenDown is an emotion which has found its thought and the thought has found words