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मेरी नज़र

थक कर मेरी नज़र जब ,                     
                                  दूर कहीं देखती है

चूमते हुए आसमाँ को , 
                                ज़मीन को देखती है 

चाहतों के बंधे पुल पर , 
                                बिखरे अरमानों को देखती है 

इस उलझी सी जिन्दगानी में , 
                                        कुछ पल सुकून के देखती है 

देखती है सपने ये , 
                         रात में दिन में भी 

उन सपनों की हक़ीक़त को भी , 
                                             सपनों में ही देखती है  

सोचती है किसी चेहरे को , 
                                    अपना ये कह सके 

उस चेहरे को भी मेरी नज़र , 
                                       मेरे अपनों में ही देखती है 

थक कर मेरी नज़र जब , 
                                  दूर कहीं देखती है

चूमते हुए आसमाँ को , 
                               ज़मीन को देखती  है

     {लेख़क: SAURAV BANSAL}

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