थक कर मेरी नज़र जब ,
दूर कहीं देखती है
चूमते हुए आसमाँ को ,
ज़मीन को देखती है
चाहतों के बंधे पुल पर ,
बिखरे अरमानों को देखती है
इस उलझी सी जिन्दगानी में ,
कुछ पल सुकून के देखती है
देखती है सपने ये ,
रात में दिन में भी
उन सपनों की हक़ीक़त को भी ,
सपनों में ही देखती है
सोचती है किसी चेहरे को ,
अपना ये कह सके
उस चेहरे को भी मेरी नज़र ,
मेरे अपनों में ही देखती है
थक कर मेरी नज़र जब ,
दूर कहीं देखती है
चूमते हुए आसमाँ को ,
ज़मीन को देखती है
{लेख़क: SAURAV BANSAL}
{लेख़क: SAURAV BANSAL}
Ossuummm Bhai... Brilliant work
ReplyDeletethanks bhai
Delete👍
ReplyDeleteWoah Saurav bhaiya! Kitna khoobsurat likha hai
ReplyDeleteVry nyc jiju👌👌
ReplyDeleteKya baat hai Bansal ! Impressive!
ReplyDeleteKya khub likha h...Waah waah
ReplyDeleteshukriya
DeleteKya baat kya baat kya baat
ReplyDeletedhanyavaad
DeleteVery beautiful lines saurav..very happy that you started with writing..keep up this work
ReplyDeletethanks jahnabee
DeleteVery nyc..
ReplyDeletethank you
DeleteVery nice lines.... great work poet sir....
ReplyDeleteGreat Line Bansal Ji....
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