उसने आज बोला, मुझे एक बात तो बताओ जो सवाल मेरे दिल में है, आज ज़ुबान बोलती है यह कैसा है राज़, ज़रा मुझे भी सुनाओ चाय की गर्म प्याली, तुम्हारी आँखों में चमक घोलती है मैंने भी उसको आज, वो राज़ बोल दिया जो अक्सर चाय के बाद, मेरी तबीयत बोलती है चाय की चुस्की ही, अक्सर हर सुबह मेरी बंद आँखों के, किवाड़ खोलती है वो उबलते पानी में, चाय की पत्ती फिज़ा में कुछ ऐसी, महक घोलती है जैसे मौसम की पहली, बारिश के बाद इस धरती की मिट्टी, सौंधी सी महकती है यूँ तो बहुत सी, खूबियाँ हैं हर किसी में मगर हर चीज़, रंग से भी जानी जाती है तुम्हारा साँवला रंग, बहुत पसंद है मुझे वजह इसकी यही, साँवली चाय जानती है ज़हन में ख़ुशी हो या, नम हों आँखें कभी मेरे हर जज़्बात को, यह चाय बाँटती है नुक्कड़ की चाय का, मज़ा है दोस्तों के साथ महबूब के साथ कॉफ़ी, कहाँ दिल खोलती है बीते हुए लम्हों की, यादें हो बिखरी सी चाय की चुस्की, हर कड़ी जोड़ती है आख़िरत का फ़िक्र हो, ज़हन में कभी चाय फिर ज़हन में, सुकून बनकर दौड़ती है सुबह का वक़्त हो, शाम हो या हो रात
ThePenDown is an emotion which has found its thought and the thought has found words