Skip to main content

Posts

Showing posts from March, 2020

चाय

उसने आज बोला, मुझे एक बात तो बताओ  जो सवाल मेरे दिल में है, आज ज़ुबान बोलती है  यह कैसा है राज़, ज़रा मुझे भी सुनाओ  चाय की गर्म प्याली, तुम्हारी आँखों में चमक घोलती है  मैंने भी उसको आज, वो राज़ बोल दिया  जो अक्सर चाय के बाद, मेरी तबीयत बोलती है  चाय की चुस्की ही, अक्सर हर सुबह  मेरी बंद आँखों के, किवाड़ खोलती है  वो उबलते पानी में, चाय की पत्ती  फिज़ा में कुछ ऐसी, महक घोलती है  जैसे मौसम की पहली, बारिश के बाद  इस धरती की मिट्टी, सौंधी सी महकती है  यूँ तो बहुत सी, खूबियाँ हैं हर किसी में  मगर हर चीज़, रंग से भी जानी जाती है  तुम्हारा साँवला रंग, बहुत पसंद है मुझे  वजह इसकी यही, साँवली चाय जानती है  ज़हन में ख़ुशी हो या, नम हों आँखें कभी  मेरे हर जज़्बात को, यह चाय बाँटती है  नुक्कड़ की चाय का, मज़ा है दोस्तों के साथ  महबूब के साथ कॉफ़ी, कहाँ दिल खोलती है  बीते हुए लम्हों की, यादें हो बिखरी सी  चाय की चुस्की, हर कड़ी जोड़ती है  आख़िरत का फ़िक्र हो, ज़हन में कभी  चाय फिर ज़हन में, सुकून बनकर दौड़ती है  सुबह का वक़्त हो, शाम हो या हो रात 

मैं वक़्त हूँ

मैं वक़्त हूँ  हर पल को बदला है मैंने   हर पल खुद भी बदल रहा हूँ   मैं वक़्त हूँ  मिटने वाली चीज़ों को            मैंने उभरते देखा है  जो मिट नहीं सकता था            उसको भी मिटते देखा है  एक बीज़ के दबने से            घने पेड़ उगते देखे हैं  एक पेड़ के कटने से            यहाँ लोग मरते देखे हैं  मैं वक़्त हूँ  मेरी धारा में जो बहता            उसको मैंने तारा है  मुझसे लड़ने वाला            हर दम यहाँ हारा है  मेरे संग चलने वाले के            क़दमों में दुनिया है  जो पीछे रह कर गिर गया            वो फ़िर कहाँ उठ पाया है  मैं वक़्त हूँ  मैं जो पास नहीं होता हूँ            पाने को मुझको रोते हो  मिल जाता हूँ जो मैं किसी दिन            यूँ ही मुझको खो देते हो  आज मैं जो तेरा हुआ हूँ            किसी और का कल फिर होना है ना मैं तेरा ना उसका सगा हूँ            फिर किस बात का रोना है  मैं वक़्त हूँ  ज़ोर तो मेरे आगे            ख़ुदा का भी चलता नहीं  ये नादां इंसान है            इतना भी समझता नहीं  कोशिशें हज़ार करता