मैं वक़्त हूँ
हर पल को बदला है मैंने
हर पल खुद भी बदल रहा हूँ
मैं वक़्त हूँ
मिटने वाली चीज़ों को
मैंने उभरते देखा है
जो मिट नहीं सकता था
उसको भी मिटते देखा है
एक बीज़ के दबने से
घने पेड़ उगते देखे हैं
एक पेड़ के कटने से
यहाँ लोग मरते देखे हैं
मैं वक़्त हूँ
मेरी धारा में जो बहता
उसको मैंने तारा है
मुझसे लड़ने वाला
हर दम यहाँ हारा है
मेरे संग चलने वाले के
क़दमों में दुनिया है
जो पीछे रह कर गिर गया
वो फ़िर कहाँ उठ पाया है
मैं वक़्त हूँ
मैं जो पास नहीं होता हूँ
पाने को मुझको रोते हो
मिल जाता हूँ जो मैं किसी दिन
यूँ ही मुझको खो देते हो
आज मैं जो तेरा हुआ हूँ
किसी और का कल फिर होना है
ना मैं तेरा ना उसका सगा हूँ
फिर किस बात का रोना है
मैं वक़्त हूँ
ज़ोर तो मेरे आगे
ख़ुदा का भी चलता नहीं
ये नादां इंसान है
इतना भी समझता नहीं
कोशिशें हज़ार करता है
रोकने की मुझको मगर
ठहरी हुई घड़ी की सुईयां
मुझको रोक सकती नहीं
चाहता है मुझको रखना
बनाकर ग़ुलाम अपना
मैं तो हवा का झोंका हूँ
रुकना मेरी फ़ितरत नहीं
मैं वक़्त हूँ
हर पल को बदला है मैंने
हर पल खुद भी बदल रहा हूँ
मैं वक़्त हूँ
|| लेख़क : सौरव बंसल ||
So well written Saurav, such maturity and understanding of the intellect of things like this.
ReplyDeleteAn artist in the making... proud of you bud����
Thanks baba, 'a good heart always sees good in everything'..
Delete🙏