कहाँ बैठकर कर रहा है
ये सारी साज़िशें
ऐ ख़ुदा तूने हमको
हैरान कर दिया
घर के बूढ़े तरसते थे
बच्चों से बात करने को
साथ बैठ रामायण देखने का
इंतेज़ाम कर दिया
जिन बच्चों को दिखते थे
पापा सिर्फ़ शाम को
अब आठों पहर का वक़्त
उनके नाम कर दिया
जिनके बच्चे पलते थे
आया की गोद में
उन माँओं को देवकी से
यशोदा कर दिया
वक़्त नहीं था जिनके पास
पल भर का भी
कैद घर में खाली
वो इन्सान कर दिया
जो लोग रोज़मर्रा में
गंभीर रहते थे
ज़िन्दगी का हर पल
अब एक लतीफ़ा कर दिया
खड़ी रह गयी गाड़ियाँ
घरों के सामने
फालतू एक पल में
साजो सामान कर दिया
बंटे हुए रहते थे जो
ऊँच नीच के दायरे में
हर इन्सान को बराबर की
रोटी का हक़दार कर दिया
ईंट पत्थर से बनकर जो
अकड़कर खड़ा था
उस मकान को हस्ता खेलता
घर कर दिया
मलिन कर दिया हमने ही
जिसको हम पूजते थे
गंगा के उस पानी को
फ़िर से पाक कर दिया
खो गयी थी जो चमक
रातों की आसमानों में
पूरी कुदरत को ज़हर से
आज़ाद कर दिया
ये तो आने वाले
वक़्त की गोद में है
इस सब में हमारा फ़ायदा था या
नुक्सान कर दिया
कहाँ बैठकर कर रहा है
ये सारी साज़िशें
ऐ ख़ुदा तूने हमको
हैरान कर दिया
|| लेख़क : सौरव बंसल ||
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