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पृथ्वी दिवस



.. पृथ्वी दिवस ..

बचपन में हर पृथ्वी दिवस पर
          हम इनाम लाते थे
पेड़ कटने से बने कागज़ पर
          चित्र बनाते थे
सूख रही थी पृथ्वी हम बेवज़ह
          जल बहाते थे
घुट रहा था दम पृथ्वी का
          हम हवा में ज़हर मिलाते थे
खोद कर पृथ्वी का सीना उसमें
          कचरा दबाते थे
वजूद मिटाकर पृथ्वी का हम
          नाज़ जताते थे
पिछले साल तक  पृथ्वी दिवस हम
          यूँ ही मनाते थे
अपने ही घर को जलाकर हम
          जश्न मनाते थे
इस बार ख़ुदा ने पृथ्वी दिवस पर
          जादू कर दिया
हवा भी साफ़ हो गयी
          दरिया पानी से भर दिया
खाली सहमे आसमानों को
          उड़ती पतंगों से भर दिया
कुछ और पेड़ बच गए
          इस साल कटने से
कुछ और परिंदों के घर
          बच गए उजड़ने से
इंसानों को करके क़ैद
          कुदरत को आज़ाद कर दिया
जैसे पृथ्वी ने इन बेड़ियों से
          खुद को आज़ाद कर लिया
अभी भी वक़्त है तुम सोचो
           और प्रण करो इस बार
हर दिन बचाओ इस घर को
          पृथ्वी दिवस का मत करो इंतज़ार

|| लेख़क : सौरव बंसल || 

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