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Showing posts from February, 2020

ज़िन्दगी

अभी....  ज़िंदा हूँ मैं , ज़िंदा है ज़िन्दगी तो क्या हुआ आज           थका सा हूँ मैं तो क्या हुआ आज कुछ           रूका सा हूँ मैं तो क्या हुआ कुछ सपने           अभी अधूरे से हैं  तो क्या हुआ कुछ अपने           अभी रूठे से हैं ज़िंदा हूँ मैं , ज़िंदा है ज़िन्दगी बहुत है अभी           सुनने को कहने को बहुत है अभी           करने को सहने को झुका नहीं हूँ बस           रुका हूँ कुछ देर सपने में ही सही           जीता हूँ कुछ देर ज़िंदा हूँ मैं , ज़िंदा है ज़िन्दगी भाग रहे हैं सब           अपनी चाहत के पीछे कुछ पैसों के पीछे           कुछ राहत के पीछे कुछ ऐसे भाग रहे हैं           जैसे सब छुट गया है जो कभी था दिल में अरमाँ           उसका दम घुट गया है ज़िंदा हूँ मैं , ज़िंदा है ज़िन्दगी भर आयी है आँख           आँसू छलका नहीं अभी बोझ है सीने में दफ़न           हुआ हल्का नहीं अभी ये कैसा है तूफान           जो आज मेरे अंदर है किस से कहूँ यहाँ           ये सियासतों का समंदर है ज़िंदा हूँ मैं , ज़िंदा है ज़िन्दगी शायद कभी कागज़ पर लिख दूँ            दिल में है जो ब

..अक्सर..

अक्सर याद आते हैं वो लम्हे  अक्सर याद आती हैं वो बातें  जाने क्यूँ इन यादों के साथ  अक्सर नम हो जाती हैं आँखें  अक्सर इक अनजानी सी            मायूसी छा जाती है  अक्सर ऐसे सन्नाटे में            कोई आवाज़ सुनाई पड़ती है  अक्सर एक जानी पहचानी            हसी सुनाई पड़ती है  अक्सर आँखों में आँसू और            लबों पर मुस्कुराहट दिखाई पड़ती है  अक्सर याद आते हैं वो लम्हे  अक्सर याद आती हैं वो बातें ...  अक्सर चाय की प्याली एक            कश की याद दिलाती है  अक्सर ऐसे कश में जिन्दगी            सिमटी सी नज़र आती है  अक्सर चमकती धूप में भी            कोहरा दिखाई पड़ता है  अक्सर ऐसे कोहरे में इक            नशा सा छा जाता है  अक्सर याद आते हैं वो लम्हे  अक्सर याद आती हैं वो बातें ...  अक्सर रात के पहर में            ठहाके सुनाई पड़ते है  अक्सर मुझे मेरे ख़्वाबों में            कुछ चेहरे दिखाई पड़ते है  अक्सर एक पुरानी तस्वीर            कुछ वादे याद दिला देती है  अक्सर कोई बहती हवा            उनका हाल-ए-दिल सुना जाती है  अक्सर

उसका क्या हो ??

ठूँठ हो गया है जो आज            कल हरा हो जायेगा  जिसका बाग़ ही सूख गया हो            फ़िर उसका क्या हो  जो खो गया किसी की याद में            फिर मिल जाएगा  जिसकी रूह दफ़न है उसी के बदन में            फ़िर उसका क्या हो  तू फ़िदा है उसपर ये सोचकर            कि एक दिन वो तेरा हो जाएगा  वो निसार है किसी और पर यही सोचकर            फ़िर उसका क्या हो  गालियाँ देता है ज़माना उसे            हसकर सह जाएगा  जिसे काटने लगे अपना ही जूता            फ़िर उसका क्या हो  जो बात नहीं करता आज             कल खुद ही बोलेगा  जिसकी ख़ामोशी भी न बोले            फ़िर उसका क्या हो  ख़ुदा रूठा है मुझसे आज             कल मान जाएगा  जिसका इश्क़ ही रूठ गया हो             फ़िर उसका क्या हो ख़राब वक्त जो आया है आज            एक दिन बीत जाएगा घड़ी का पुर्ज़ा ही ख़राब हो            फ़िर उसका क्या हो  वो जिस्म से टूटा है            फिर भी जुड़ जायेगा  जिसका दिल ही टूट गया हो            फ़िर उसका क्या हो  पिंजरे से परिंदा तो            फिर भी निकल जाएगा