ठूँठ हो गया है जो आज
कल हरा हो जायेगा
कल हरा हो जायेगा
जिसका बाग़ ही सूख गया हो
फ़िर उसका क्या हो
जो खो गया किसी की याद में
फिर मिल जाएगा
जिसकी रूह दफ़न है उसी के बदन में
फ़िर उसका क्या हो
तू फ़िदा है उसपर ये सोचकर
कि एक दिन वो तेरा हो जाएगा
वो निसार है किसी और पर यही सोचकर
फ़िर उसका क्या हो
गालियाँ देता है ज़माना उसे
हसकर सह जाएगा
जिसे काटने लगे अपना ही जूता
फ़िर उसका क्या हो
जो बात नहीं करता आज
कल खुद ही बोलेगा
जिसकी ख़ामोशी भी न बोले
फ़िर उसका क्या हो
ख़ुदा रूठा है मुझसे आज
कल मान जाएगा
जिसका इश्क़ ही रूठ गया हो
फ़िर उसका क्या हो
ख़राब वक्त जो आया है आज
एक दिन बीत जाएगा
घड़ी का पुर्ज़ा ही ख़राब हो
फ़िर उसका क्या हो
वो जिस्म से टूटा है
फिर भी जुड़ जायेगा
जिसका दिल ही टूट गया हो
फ़िर उसका क्या हो
पिंजरे से परिंदा तो
फिर भी निकल जाएगा
जिस परिंदे में पिंजरा हो
फ़िर उसका क्या हो
मेरी कहानी का अंजाम
जाने क्या लिखा जाएगा
जिसकी कहानी ही पूरी न हो
फ़िर उसका क्या हो
वक़्त नहीं है उनके पास
मेरी किताब पढ़ने का
जिसे घर चलाना है लफ्ज़ बेचकर
फ़िर उसका क्या हो
|| लेख़क : सौरव बंसल ||
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