वो लड़ रहे थे मौत से
मौत की गोद में बैठकर
वो जो दवा कर रहे थे
खुद मरीज़ हो गए
वो कर रहे थे बदसलूकी इनसे
जिनको ज़रूरत है इनकी
जो अपनों के बीच ही मुहाजिर हैं
यहाँ बुद्धिजीव हो गए
हम बैठे थे अपने शबिस्तां में
पूरी हिफ़ाज़त के साथ
वो अपने घरों से दूर थे
इस जानलेवा मर्ज़ के क़रीब हो गए
कौन कहता है कि जंग सिर्फ़
सरहद पर लड़ी जाती है
कुछ सफ़ेद वर्दी वाले
इस जंग में शहीद हो गए
ये जो कर रहे हैं सियासत
इस गूढ़ वक़्त में भी
इनसे कहदो जो कल मेमने थे
आज मतंग हो गए
कोई है मेरा अपना भी
जो इस लड़ाई में मशगूल है
मेरे घर के आईने भी
उसकी फ़िक्र में मसरूफ़ हो गए
यूँ ही नहीं सफ़ेद वर्दी को
ख़ुदा की सूरत कहा जाता
जाने कितने इनकी बदौलत
जीवंत हो गए
सलाम है लविशा तुमको
और दुनिया के हर ताबीब को
तुम्हारी शिद्दत के आगे
सब क्षीण हो गए
|| लेख़क : सौरव बंसल ||
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